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भक्ति आन्दोलन : मानुष जनम अनूप

  धर्म विश्व का एक सिद्धांत है , एक विश्वकोषीय संग्रह है ,  एक लोकप्रिय रूप में तर्क है , एक आध्यात्मिक सम्मान बिंदु है , सांसारिक उत्साह है , नैतिक सहमति है , विधिपूर्ण पूरक है , सांत्वना और औचित्य का सार्वभौमिक स्नोत। यह मनुष्य के जीवन-सार का खूबसूरत एहसास है , क्योंकि जीवन का सार परम-सत्य नहीं है। धर्म के विरुद्ध संघर्ष इसलिए परोक्ष रूप से उस दुनिया की लड़ाई है जिसमें धर्म एक आध्यात्मिक सुगंध है। धार्मिक संकट एक ही समय में असल संकट की अभिव्यक्ति भी है और विरोध भी। धर्म उत्पीड़ित प्राणी का उच्छवास है , हृदयहीन दुनिया का हृदय है , आत्महीनों की आत्मा है।   यह जनता की अफीम है।"                                                                                           कार्ल मार्क्स [i] " भक्तिकाल की मूल भावना साधारण जनता के कष्ट और पीड़ा से उत्पन्न है।... इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि भक्ति भावना की तीव्र आर्द्रता और सारे दुखों और कष्टों के परिहार के लिए ईश्वर की पुकार के पीछे जनता की भयानक दुःस्थिति छिपी हुई है।"