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Showing posts from March, 2019

संस्कृति विमर्श : होलिका की पीड़ा

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संस्कृति का इतिहास बर्बरता का भी इतिहास रहा है। इतिहास की तथाकथित जय यात्रा में ना जाने कितनी अस्मिताओं को मूक बनाकर उसे पुरुष सापेक्ष वीरता के इतिहास के रूप में परोसा गया। इतिहास और मिथकों में अस्मिताओं की हत्या के साथ   उन्हें खलनायक के रूप में प्रस्तुत करने का भी पुरजोर तरीके से काम हुआ है। हिन्दू मिथक और इतिहास में ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं।       मैं होलिका , युग-युग   से अपनी ऐसी गलती के लिए प्रताड़ित हो रही हूँ जो मैंने की ही नहीं थी। पितृसत्ता की धूर्त चाल ने मिथ को ऐसे गढ़ा कि पुनि- पुनि स्त्री को बदनामी ही विरासत में मिली। आप सभी जानते हैं कि प्रह्लाद मेरा भतीजा था , बहुत प्यारा भतीजा। बुआ तो माँ से कमतर नहीं होती। आप भी किसी की बुआ होंगी। आप अपने प्रह्लाद के बारे में सपने में भी ऐसा सोच सकती   हैं ?                                  हिरणाकश्यप दम्भी राजा था। नास्तिक था। प्रह्लाद घोर आस्तिक। बचपन से विष्णु भक्त। जब वह प्रह्लाद को मार देने की सारी बाजी हार गया त...

वर्तमान से संवाद : 'क्या हमारा देश ‘वृद्धों’ का देश है?'

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           किसी भी देश का वर्तमान और भविष्य तरुणाई पर निर्भर करता है, तरुण पर नहीं| युवा होने का मतलब युवाचित्त का होना है, युवाचित्त परिवर्तन और क्रांति का आकांक्षी होता है| सपने देखने वाला होता है| इसके विपरीत उम्र से कोई बूढ़ा नहीं होता बल्कि ‘मुर्दा शान्ति से भर जाना’ वृद्ध होना है| पिटी-पिटाई लीक का फ़क़ीर ‘वृद्धचित्त’ का परिचायक   है| परिवर्तन और सचेत-दृष्टि   से संपन्न वृद्ध भी असली मायने में युवा होता है| विगत कुछ वर्षों से देश में जिस तरह प्रेम को लेकर, विज्ञान को लेकर, खान-पान को लेकर और युद्ध आदि को लेकर देश में युवाओं की कूपमंडूकता और उन्मादी छवि से साक्षात्कार हुआ है, इससे तो लगता है हिन्दुस्तान बूढ़ों का देश है, क्योंकि संख्या की दृष्टि से हिन्दुस्तान   सबसे बड़ा युवाओं का देश है, लेकिन जब देश के अधिसंख्य युवा वृद्धचित्त के हों तो दुःख के साथ कहना पड़ता है कि हमारा देश बुढ़ायी मानसिकता की और अग्रसर है|  आलोचनात्मक-विवेक युवामन की जाग्रत गति है| अस्वीकार का साहस और साहस का स्वीकार ही असली मायने में युवा होना है| लेकिन ...