शिक्षा विमर्श : प्रश्नोन्मुखी शिक्षा की पड़ताल

प्रस्तुत आलेख में शिक्षा की कुछ बुनियादी समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है। ये समस्यायें इतनी गहरी जड़ जमा चुकी है और इस स्तर तक रच-पच गई हैं कि इसे उखाड़ फेकना तो दूर की बात है इस पर विचार तक करना गुनाह लगने लगा है। बावजूद इसके इस पर विचार करना होगा। क्योंकि परिवर्तन या बदलाव का पहला कदम हैं-समस्या पर सोचना और उस पर विमर्श करना। घनघोर विवादास्पद किंतु जीनियस दर्शनशास्त्री ओशो ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘ शिक्षा में क्रांति ’ में इन समस्याओं से टकराने की भरपूर चेष्टा की है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में सिद्धांत के रूप में जो कई सूत्र वाक्य गढ़े गए हैं , वे अत्यंत सटीक हैं किंतु कई बार व्यावहारिक स्तर से उनका विरोध रहा है। उदाहरण के लिए शिक्षा या विद्या की परिभाषा तो यह दी गई कि ‘ सा विद्या या विमुक्तये ’ अर्थात् जो मुक्त करे वही विद्या हैं लेकिन स्थिति ठीक इसके विपरीत है। आज जो जितना शिक्षित है , वह उतना ही परतंत्र है। बकौल ओशो , ‘‘ सारे जगत में विद्या तो बढ़ती ज...