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Showing posts from April, 2019

शिक्षा विमर्श : प्रश्नोन्मुखी शिक्षा की पड़ताल

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   प्रस्तुत आलेख में शिक्षा की कुछ बुनियादी समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है। ये समस्यायें इतनी गहरी जड़ जमा चुकी है और इस स्तर तक रच-पच गई हैं कि इसे उखाड़ फेकना तो दूर की बात है इस पर विचार तक करना गुनाह लगने लगा है। बावजूद इसके इस पर विचार करना होगा। क्योंकि परिवर्तन या बदलाव का पहला कदम हैं-समस्या पर सोचना और उस पर विमर्श करना। घनघोर विवादास्पद किंतु जीनियस दर्शनशास्त्री ओशो ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘ शिक्षा में क्रांति ’ में इन समस्याओं से टकराने की भरपूर चेष्टा की है।                    हमारे प्राचीन ग्रंथों में सिद्धांत के रूप में जो कई सूत्र वाक्य गढ़े गए हैं , वे अत्यंत सटीक हैं किंतु कई बार व्यावहारिक स्तर से उनका विरोध रहा है। उदाहरण के लिए शिक्षा या विद्या की परिभाषा तो यह दी गई कि ‘ सा विद्या या विमुक्तये ’ अर्थात् जो मुक्त करे वही विद्या हैं लेकिन स्थिति ठीक इसके विपरीत है। आज जो जितना शिक्षित है , वह उतना ही परतंत्र है। बकौल ओशो , ‘‘ सारे जगत में विद्या तो बढ़ती ज...

शिक्षा विमर्श : वैज्ञानिक-चित्त की खोज में बेचैन एक शिक्षाविद्

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    प्रसिद्ध वैज्ञानिक यशपाल एक साल पूर्व चुपचाप इस दुनिया से चले गये , बगैर किसी शोर शराबे के। जहाँ-तहाँ छिटपुट खबरें भी आईं। संभव है देश के विविध विज्ञान केंद्रों और संस्थानों में उनकी मृत्यु के पश्चात   गंभीर विचार-विमर्श और गोष्ठियाँ भी हुई हों। किंतु देश   में विज्ञान के लिये यह चिंता का विषय है कि आमजन यशपाल से परिचित नहीं हो पाये। जबकि यशपाल की पूरी जद्दोजहद आमजन में विज्ञान को लोकप्रिय बनाना था , आमलोगों में वैज्ञानिक समझ को विकसित करना था। पार्टिकल फिजिक्स के विलक्षण ज्ञाता और   विज्ञान की समझ को ‘ टर्निंग प्वाइंट ’ धारावाहिक के जरिये जन-जन तक पहुँचाने का सपना देखने वाले यशपाल का सपना पूरा नहीं हो पाया। यशपाल का जाना सिर्फ एक वैज्ञानिक का जाना नहीं है , बल्कि एक ऐसे शख्सियत   का जाना है जो प्रति पल , प्रति क्षण विज्ञान की सामाजिकता और विज्ञान के जन सरोकार के प्रति चिंतित रहता था। यशपाल बराबर इस बात को रेखांकित करते कि देश   में सभी अपने बच्चों को विज्ञान पढ़ाना चाहते तो हैं किंतु वैज्ञानिक दृष्टि नहीं देना चाहते। बच्चों के आगे समाज की ...

आलोचक से संवाद : सम्पन्न इतिहास-दृष्टि का गोताखोर आलोचक : प्रदीप सक्सेना

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                                                                            महान चिंतक , समाज वैज्ञानिक कार्ल मार्क्स की 200 वीं जयंती वर्ष का आरंभ हो चुका है। तेजी से बदलती दुनिया और उससे भी तेजी से बदलते विचार-संसार में 200 वर्षों तक किसी विचार का टिके ही नहीं रहना बल्कि सर्वाधिक जीवंत और सक्रिय विचार के रूप में कारगर हस्तक्षेप की भूमिका में रहना असाधारण बात है। सोवियत संघ के विघटन को मार्क्सवाद के अंत की घोषणा करने वाले ऐसे विद्वानों की कमी नहीं जो मार्क्सवाद की ‘ शव साधना ’ में ही अपना बौद्धिक पराक्रम समझते हैं। लेकिन  सायास वे इस तथ्य से परिचित होना नहीं चाहते कि कई विश्वस्तरीय शोध और सर्वे इस बात की तस्दीक करते हैं कि मार्क्सवाद आज भी सर्वाधिक उर्जस्वित और परिवर्तनकामी विचारधारा के रूप में संसार भर में प्रतिष्ठित है। अकादमिक दुनिया में विशेषकर युवा विचारकों में मार्क्सवाद के प...