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सूफ़ी साहित्य : सत्ता, संघर्ष और मिथ

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   हिन्दी साहित्य के विद्यार्थी सूफी साहित्य के नाम पर अमूमन प्रेमाख्यान काव्य से ही परिचित हैं। प्रेमाख्यान काव्य में भी मल्लिक मुहम्मद जायसी से। हिन्दुस्तान या हिन्दुस्तान से बाहर के सूफी साहित्य के प्रति यहाँ  उदासीनता ही नज़र आती है। दूसरी तरफ सूफ़ी साहित्य के प्रति यहाँ दृष्टिकोण भी नितांत एकांगी रहा है। सामान्य रूप से हमलोग सूफ़ियों के बारे में यही जानते हैं कि वे सत्तातंत्र से बेफ़िक्र धार्मिक रूढ़ियों से इतर प्रेम और मनुष्यता के गीत गानेवाले  मस्त फ़क़ीर होते हैं। यह एक मिथ है। इसके उलट कई बड़े सूफ़ी कवियों की सत्तातंत्र से गलबहियाँ भी रहीं हैं और और धार्मिक संकीर्णता भी। किन्तु ‘राजनितिक रूप से सही’ (पोलिटिकल करेक्टनेस) होने की विवशता में प्रगतिशील लेखक इसे रेखांकित करने से परहेज करते हैं और दूसरे खेमे के लोग पठन-पाठन के अभाव में या तो लिखते नहीं और अगर लिखते हैं तो पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर। प्रस्तुत आलेख में सूफ़ी साहित्यमें विन्यस्त अंतर्विरोधों और अंतर्द्वंद्वों को उसकी सीमाओं और संभावनाओं के साथ  देखने की कोशिश की गई है। आजकल आधुनिकता के अतिरिक्त दबाव म...