बालमुकुन्द गुप्त की किसान चेतना

तब मैं भारत पुत्र कहाऊं दुखमय दशा सुधारि देश को, उन्नति पथ पर लाऊँ लखत विलखत कृषक बन्धु को आंसू पोछ हँसाऊँ श्यामलाल गुप्त हिंदी साहित्य के इतिहास में भारतेंदु और द्विवेदी युग का महत्व अपने समय को थाहने, मापने और उससे होड़ लेने में है| आशय यह कि इस युग की रचना समय-सचेत रचना है| दुःख की बात यह है कि आज का हिंदी साहित्य अपने समय का जायजा उस रूप में नहीं ले पा रहा| आज देश में सबसे बदतर स्थिति किसानों की है| अब तो उनकी आत्महत्या खबर भी नहीं बन पाती| मीडिया को इस तरह की ख़बरें प्रसारित करने की अप्रत्यक्ष मनाही ह...