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लोकगाथा का सामाजिक-सांस्कृतिक सन्दर्भ

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     लोकगाथा का सामाजिक-सांस्कृतिक सन्दर्भ              (मैथिली लोकागाथों के विशेष सन्दर्भ में)         जनसमूह के व्यापक अनुभव और उनकी आकांक्षाओं की लंबी तथा क्रमिक कथात्मक अभिव्यक्ति ही लोकगाथा है। समाज में जब निम्न वर्णों को शास्त्रीय और नागरिक साहित्य , संगीत और कला के माध्यमों से सायास अलग रखने की चेष्टा की गई होगी तब उन्होंने अपने लिए इतिहास , मिथ , यथार्थ , कल्पना आदि के समिश्रण से लोकगाथाओं का सृजन किया होगा। अधिकांश लोकगाथाओं को गानेवाले , अभिनीति करनेवाले और देखनेवालों की पृष्ठभूमि की जब पड़ताल की जाती है तो उक्त स्थापनाएँ सही प्रतीत होती हैं। सामान्यतया देखा गया है कि निम्न जाति और दलित वर्ग ही इन लोकगाथाओं में विशेष आनंद लेते हैं। अपवादस्वरूप कुछ अभिजात    वर्ग भी इसमें आनंद लेते हैं , लेकिन ‘आउटसाइडर’ की तरह। मैथिली भाषा-भाषी क्षेत्र में उत्सव विशेष पर जब कई-कई रातों तक धारावाहिक लोकगाथाएँ मंचित होती होती रहती हैं तब दलित जनसमूह उन लोकगाथाओं को देखता कम , जीता और भोगता अधिक है। उ...