लिखना चुप रहने के विरुद्ध एक खामोश लड़ाई : केदारनाथ सिंह
बातचीत मनुष्य का सहज गुण है| यही सहजता साक्षात्कार विधा को रोचक और सरस बनाता है| कठिनाई यह है कि अपने यहाँ इस विधा को गंभीरता से नहीं लिया जाता| हिन्दुस्तान में साक्षात्कार विधा को वह लोकप्रियता नहीं मिल पायी जो अन्य कई देशों में उसे प्राप्त है | इस विधा की एक बड़ी विशेषता यह है कि इसमें पूछे गए प्रश्नों और जिज्ञासाओं का उत्तर उस रूप में सुनियोजित और सुचिंतित नहीं होता | फलस्वरूप ऐसी कई बातों का खुलासा साक्षात्कार में हो जाता है जो औपचारिक लेखन में संभव नहीं है | औपचारिक लेखन में लेखक पूर्णतः सचेत होता है और हम सभी जानते हैं कि सचेत होने की अपनी सीमाएँ होती हैं | इसके उलट साक्षात्कार में वह अपेक्षाकृत उन्मुक्त और अनौपचारिक होता है | इस अनौपचारिकता में , बातचीत की उन्मुक्तता में कई ऐसी बातों और अवधारणाओं का उद्घाटन संभव हो पाता है जो कई बार चमत्कृत ही नहीं करता बल्कि अत्यंत मूल्यवान भी होता है | इसका कारण यह है कि साक्षात्कार में एक विशेष प्रकार की सहजता होती है और होती है एक विलक्षण किस्म की आत्मीयता | सहजता और आत्मीयता के माहौल में रचनात्मकता और नूतनता के लिए...