कनुप्रिया विचार-बोध और काव्य-बोध के अंतर्द्वद्व की उपज
धर्मवीर भारती हिंदी के सफलतम नाटककार , उत्तम कहानीकार , लोकप्रिय उपन्यासकर , अस्पष्ट और आग्रही आलोचक , सत्ता-पसंद पत्रकार और मूलतः प्रेम-श्रृंगार भाव के कवि हैं। इस प्रेम और श्रृंगार भाव का शिखर ' कनुप्रिया ' है। यह भाव ' कनुप्रिया ' में जितना खिलकर और खुलकर विन्यास पाता है , कदाचित अन्यत्र नहीं। वैसे उनके पहले काव्य संग्रह ' ठंडा लोहा ' से लेकर ' सात गीत वर्ष ' और ' कनुप्रिया ' तक में प्रेम के विविध और विलक्षण रूपों से साक्षात्कार सुखद है। आलोचकों ने इनके प्रेम कविताओं में कैशोर्य भाव को प्रमुख माना है। उनका पहला उपन्यास ' गुनाहों का देवता ' भावुक किशोर प्रेम की उत्कट अभिव्यक्ति है। यह उपन्यास किशोरों और युवाओं में जितना लोकप्रिय हुआ शायद हिंदी का दूसरा उपन्यास नहीं। सौ से अधिक संस्करण इसके प्रमाण हैं। भारती निरंतर प्रेमाभिव्यक्ति में विविधता लाते रहे , किंतु कविता में भी ' गुनाहों का देवता ' समूलतः उनका पीछा कभी छोड़ नहीं पाता है। कनुप्रिया में भी प्रेम का यह रूप हुलकी मार ही जाता है। वैसे किशोर प्रेम उतना निंदनीय...