Posts

Showing posts from October, 2018

वर्तमान से संवाद - हिज़ड़े : भारत माँ के ये अनाथ बच्चे

Image
                                “हम सब असल में एक सामंती मानसिकता या कहें कि लिंगधारी मानसिकता वाले समाज में रह रहे हैं. हमारे भीतर लिंग को लेकर गहरे तक गर्व का भाव है. यही कारण है कि मानसिक रूप से ग्रस्त बच्चों को तो हम 70-70 साल तक करोड़ों रूपए खर्च कर पालते हैं, लेकिन लिंग अस्पष्टता वाले बच्चे को हम तुरंत परिवार से बाहर कर देते हैं| हमारा पौरुष और हमारी मर्दानगी अच्छे काम के बजाय जब तक मूंछों से तय होगी तब तक इस मानसिकता से छुटकारा संभव नहीं|”                           तीसरी ताली- प्रदीप सौरभ  दरअसल, जिस समाज और संस्कृति में पुत्र ही भवसागर का एकमात्र खेवैया हो और पुत्र हेतु ही पत्नी की आवश्यकता हो 'पुत्रः प्रयोजनो भार्या’ उस समाज में लिंग वंचित व्यक्ति की पीड़ा को थाह पाना संभव नहीं| दो लिंगी समाज के अभ्यस्त प्राणी तीसरे लिंग के बारे में सोच ही नहीं सकते हैं|  इस समाज को तो बस मुक्तिदाता लिंग चाहिए और इस मुक्तिदाता पुरुष ...

रचना से संवाद : सिरजनहार मैथिल कोकिल विद्यापति

Image
     उषाकिरण खान का उपन्यास सिरजनहार (भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन) महाकवि विद्यापति के जीवन-वृत्त, जीवन-संघर्ष और जीवन-द्वन्द की सृजनात्मक अभिव्यक्ति है. विद्यापति का सुदीर्घ जीवन विविध भावों, विचारों, और व्यव्स्थाओं का ‘विरुद्धों का सामंजस्य’ है. अन्यतम और अन्तरंग श्रृंगार से लेकर पराकाष्ठा भक्ति, शास्त्रीय और पांडित्यपूर्ण भाषा संस्कृत से लेकर लोक भाषा मैथिली, राजदरबार की समृद्धशाली ऐश्वर्य से लेकर गांव के खेत-खलिहान और युद्ध में तलवारबाजी से लेकर काव्य-रचना तक विद्यापति की समवेत आवाजाही उनके व्यक्तित्व को सर्वथा अलग और विविधरंगी बनता है. और यही वजह है कि इनका व्यक्तित्व और कृतित्व लेखकों को आकर्षित करता रहा है. उषाकिरण ने इस ऐतिहासिक जीवनीपरक उपन्यास सिरजनहार में विद्यापति को समग्रता में खोजने का प्रयास किया है. इस खोजने की प्रक्रिया में निश्चित रूप से लेखिका ने विद्यापति की कविताओं को केंद्र में रखा है, लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि उनकी इतिहास-चेतना उन कविताओं में गुम नहीं हो पायी है.                      ...

संस्कृति विमर्श: आएं, वध का उत्सव मनाएं

Image