वर्तमान से संवाद - हिज़ड़े : भारत माँ के ये अनाथ बच्चे

“हम सब असल में एक सामंती मानसिकता या कहें कि लिंगधारी मानसिकता वाले समाज में रह रहे हैं. हमारे भीतर लिंग को लेकर गहरे तक गर्व का भाव है. यही कारण है कि मानसिक रूप से ग्रस्त बच्चों को तो हम 70-70 साल तक करोड़ों रूपए खर्च कर पालते हैं, लेकिन लिंग अस्पष्टता वाले बच्चे को हम तुरंत परिवार से बाहर कर देते हैं| हमारा पौरुष और हमारी मर्दानगी अच्छे काम के बजाय जब तक मूंछों से तय होगी तब तक इस मानसिकता से छुटकारा संभव नहीं|” तीसरी ताली- प्रदीप सौरभ दरअसल, जिस समाज और संस्कृति में पुत्र ही भवसागर का एकमात्र खेवैया हो और पुत्र हेतु ही पत्नी की आवश्यकता हो 'पुत्रः प्रयोजनो भार्या’ उस समाज में लिंग वंचित व्यक्ति की पीड़ा को थाह पाना संभव नहीं| दो लिंगी समाज के अभ्यस्त प्राणी तीसरे लिंग के बारे में सोच ही नहीं सकते हैं| इस समाज को तो बस मुक्तिदाता लिंग चाहिए और इस मुक्तिदाता पुरुष ...