प्रेम और पाखण्ड को नापती कहानियाँ
चन्द्ररेखा ढडवाल के ताज़ा संग्रह सीवनें उधडती हुईं की कहानियाँ जितनी सीवनें उधेड़ती हैं उनसे अधिक जीवन की दरारों, फाटों और दरकनों को सिलती-बुनती चलती हैं| इनकी कथा दृष्टि में जीवन एक पहेली न होकर कहीं बिलकुल आसपास ही धमाचौकड़ी और हलचल मचानेवाली हैं| इनकी कहानियाँ कभी सीधे तो कभी चुपके से हताशा और अवसाद से निराश नहीं होतीं बल्कि अपनी पूरी चेतना में उससे मुठभेड़ करती हैं| स्वाभाविक है कि इस मुठभेड़ में मनुष्य कहीं पराजित होता है तो कहीं जीतता भी है| लेकिन जीवन के अंतिम छोर तक वह अपनी लड़ाई जारी रखता है| दूसरी बात जो रेखांकित करनेवाली है वह यह है कि इनकी कहानियाँ चमत्कृत या हतप्रभ नहीं करतीं, धीरे-धीरे वह आपके जेहन में उतरती जातीं हैं और आपसे जबाव-तलब करतीं हैं| स्त्री-विमर्श की क्रांतिकारी स्थापनाओं के बरक्स चंद्रेरेखा की स्त्रियाँ पुरुषों की द्विविधाओं और उनकी मानसिक दुचित्तापन को संवेदनशीलता के साथ समझने की कोशिश करतीं हैं| इस समझने-बुझने में वे परिस्थितियों से सम...