मन वृंदावन: विलक्षण प्रस्तुति
4 अक्टूबर की संध्या.. और श्री राम सेंटर (मंडी हाउस, दिल्ली) का सुहाना नाट्यमय
परिसर। लंबी अवधि के बाद शब्द के सही
अर्थों में साहित्यिक नाटक 'मन वृंदावन' देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ। प्रेक्षागृह मीरा स्नेही और नाट्य प्रेमी दशकों से खचाखच... पार्श्व में
मीरा के पदों की सांगीतिक मनोहारी धुन। माधुरी
सुबोध (पूर्व प्रोफेसर, एलएसआर कॉलेज, दिल्ली)
लिखित और नीलेश दीपक निर्देशित 'मन वृंदावन'
भक्त कवयित्री मीरा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधारित नाटक का
मंचन। लेखिका ने मीरा के व्यक्ति-चित्र और उनकी सृजनशीलता को इस तरह अंतर्भुक्त कर
दिया कि दोनों रूप एकाकार हो गए। नीलेश दीपक के
निर्देशन की सार्थकता इसमें रही कि
मध्ययुगीन वातावरण को सिरजने में वे सफल रहे। जितना ही भव्य मंच
सज्ज़ा (श्याम कुमार साहनी) उतनी ही सुखद और विलक्षण प्रकाश परिकल्पना (दिव्यांग श्रीवास्तव)
नाटक में कान्हा-प्रेम और पतिप्रेम के द्वंद्व को कलात्मक ऊंचाई
प्रदान की गई। मीरा के जीवन के उत्तरार्द्ध
के शोषण और उनके अदम्य संघर्ष का
रेखांकन भी नाटक को गरिमापूर्ण बना रहा था।
सुरुचिपूर्ण नृत्य संयोजन (आस्था गुप्ता) और बालिकाओं (कम्या,
वानिया और इषिता) के नृत्य ने नाटक को सरस
बना दिया था।
सफल अभिनय पर ही नाटक की सफलता निर्भर करती है। लगभग सभी पात्रों ने सफल अभिनय का परिचय दिया। मीरा की भूमिका का तो कहना ही क्या! मीरा के रूप में निशा उपाध्याय ने लेखिका और निर्देशक की कल्पना को मूर्तरूप प्रदान कर दिया। मधुछंदा (प्राणप्रिय दासी/सखी) का सशक्त अभिनय दर्शकों को अलग से रेखांकित कर गया। मीरा के पति भोजराज और जीवगोस्वामी की भूमिका में गौरव कुमार ने प्रभावशाली अभिनय का परिचय दिया। व्यक्तित्व की सहजता और शालीनता को उद्घाटित करने में गौरव सक्षम दिखे। जयमल के अभिनय में कृष्णा राजपूत और राव दूदा जी के चरित्र में आनंद सागर को दर्शकों ने खूब पसंद किया। उनकी भरपूर सराहना हुई।
दृष्टिसम्पन्न वेशभूषा (डालचंद, दीपिका,
गौरव, सुरभी), सार्थक
मेकअप (मुकेश झा) और आवश्यक प्रॉपटीज (कृष्णा/ सत्यम) के समावेशी संयोग से नाटक का निखार देखते ही बन रहा था। नाटक
में संगीत एवं गायन का रिकार्डिंग भी लोगों को लुभा रहा था| इसके लिए स्टूडियो साउंडवेज और उसके संचालक राजीव कुमार
मिश्र बधाई के पात्र हैं| बतौर निर्देशक नीलेश दीपक की कुशलता
लगातार पुख्ता होती जा रही है। उनकी प्रस्तुतियों में एक 'बड़े
निर्देशक' की कौंध साफ नजर आती है। नाटक के प्रत्येक अवयवों, प्रत्येक नाट्य-युक्तियों
पर उनकी पैनी दृष्टि रहती है। अन्यथा मध्यकालीन
कवयित्री मीरा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधारित नाटक को संभालना और उसे पूरी
सफलता से निर्वाह ले जाना साधारण नाट्यकर्म नहीं। अत्यल्प स्थान पर संवाद अदायगी
की त्रुटियों (लिप्सिंग) को दर्शकों ने नोटिस ली।
दृश्यों को अधिक से अधिक संवेद्य और
रूमानी बनाने के लिए कृत्रिम धुएं का उपयोग नाटक के
यथार्थ को बाधित कर रहा था। कुल मिलाकर 'मन वृंदावन' दर्शकों के मन पर लंबे समय तक छाया
रहेगा।
Ati uttam . Sabhi ko shubhkamnaye . yah puri mandali ka parishram safal raha
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