रामराज्य आ मैथिली रामायणक सीता
तुलसीकृत ‘रामचरितमानस’ आ मैथिली रामायणमे सीताक छवि सायास खास तरहक ‘टिपिकल’ ‘भारतीय नारीक’ बनायल गेल-पतिव्रता, पतिचरणानुरागी, सलज्ज, मितभाषी, ममतामयी, पित्तमरु, धैर्यवती आदि-आदि। किन्तु विभिन्न भारतीय भाषाक
रामायण सीताक एहि छविकें ध्वस्तक‘ एकटा मजबूत, रीढ़युक्त,
स्वपूर्ण विवेकवाली,
स्पष्टवादिनी, विपरीत परिस्थितियोमे निर्णय लयबाली, आत्मचेतस व्यक्तित्वक रूपमे स्थापित करैत अछि।
एहन व्यक्तित्त्व जे अपन अधिकार लेल संघर्ष कयलक आ आवश्यकतानुसार स्पष्ट रूपसँ दू
टूक अपन बात पूर्ण आत्मविश्वास संग रखलक। मुदा तुलसीकृत सीतासँ अनुकूलित मन
नहि त‘ एहि तेजस्वी
सीताकें देख पबैत अछि आ नै पचा पबैत अछि। राम वन-गमन प्रसंगमे सीताक दृ़ढ़ निश्चयी
छविसँ साक्षात्कार होइछ। पूरा अयोध्या राम संग सीता वन-गमनक विरोधमे छल, कौश्ल्यासँ ल‘ क‘ रामधरि प्रसास कयलनि, मुदा सीता टस-सँ-मस नहि भेलीह। कारण, अधिकार-बोध। पति संग रहब हुनक अधिकार छलनि।
सासु आ सासुरक प्रति कर्तव्य बोधक काट
सीता अत्यंत शालीनतापूर्वक पतिक प्रति दायित्त्व-बोधसँ देलीह। अग्नि-परीक्षा हो वा
निर्वासन, सीताक पक्ष घोर
आलोचनात्मक छल। अग्नि परीक्षा देलीह अवश्य मुदा रामक पुरुषवादी ‘मर्यादा’कें उद्धाटित सेहो कयलीह। ई अकारण नहि जे हुनका
ठकि-फुसिायक‘ निर्वासित कयल
गेल। तात्पर्य ई जे सम्पूर्ण भारतीय माइथालोजीमे
कदाचित सीता सन दृढ़ निश्चयी, गंभीर, विवेक सम्पन्न,
आलोचनात्मक दृष्टिसँ
सम्पन्न, पराक्रमी, निर्लिप्त, निर्लोभ आ एकल अभिभावकत्व वाली सशक्त स्त्री
ताकब असंभव।
रामायण काव्य परंपरामे रामराज्य एकटा भव्य
आदर्श राज्यक रूप में मान्य आ प्रतिष्ठित रहल अछि। ई ऐहन यूटोपिया रहल अछि जे
समय-समय पर विभिन्न राजनीतिक पार्टी एहि राज्यक वैशिष्ट्य आ महानताक रेखांकन करैत
रहल अछि। महात्मा गांधी सेहो रामराज्यक भारी प्रशंसक छलाह। वर्तमानक केन्द्र
सरकारक आदर्श सेहो रामराज्य रहल अछि। तुलसीदासक रामराज्यकसँ कतेको आधुनिक चित्तक
विद्वान, लेखक, पाठक आदि प्रभावित रहल छथि। मुदा सोचबाक बात ई
जे शंबूक आ सीता लेल रामराज्य आदर्श राज्य छल वा अभिशप्त राज्य? शंबूक त‘ तैयो पुरुष छल आ ओकर हत्या एक्के बेरमे क‘
देल गेल छल। मुदा सीताकें
त‘ एहि ‘भव्य’ रामराज्यमे बेर-बेर कुलच्छिनी आ चरित्रहीन
होयबाक आरोपे नहि लगायल गेल अपितु पूर्ण गर्भावस्थामे परित्यक्ता बना असगरे जंगलमे
घुटि-घुटि क‘ मरबाक हेतु छोड़ि
देल गेल। सीता मिथिलाक बेटी छलीह, अत्यंत प्यारी आ स्नेहमयी। विवाहसँ पूर्व ओ दुख जनबे नहि कयलीह। मुदा नहि जानि
कोन लगनमे हुनक विवाह रामसँ भेलनि जे विवाहक बाद ‘दुखे हुनक जीवनक कथा भ‘ गेल’। एहि दृष्टिएँ जँ देखी त‘ मिथिली रामायणमे वर्णित रामराज्य आ अन्य भारतीय
भाषाक रामराज्यमे अन्तर होयबाक चाही। कारण मैथिली रामायण सीताक आँखिक देखल रामायण
अछि। सामान्य लौकिक सचाई छैक जे जँ ककरो
निर्दोष बेटीकें ओकर सासुरक लोक कलंकित, लांक्षित, अपमानित आओर प्रताड़ित करैत होइक त‘ ओकर नैहरक लोककें ओकर सासुर आ सासुरक लोकक
प्रति आदर भाव नहि भ‘ सकैत छैक। सीता
संगे यैह भेलैक। ई अकारण नहि जे मिथिलामे आइयो ई लोक प्रचलित धारणा छै जे अयोध्या
दिस कियो अपन बेटीक बियाह नहि करय।
मिथिला प्रचीन कालसँ भक्ति प्रदेश रहल अछि।
फलस्वरूप ईश्वरक रूपमे मान्य रामक प्रति आलोचनात्मक रवैया अतुक्का कविगणमे नहि
भेटैछ। आश्चर्यक विषय ई जे ओतबो आलोचनात्मकता नहि जतेक बाल्मीकि, कालिदास, भवभूति आ स्वयंभू आदि मे। लंका विजयक पश्चात
जखन सीता रामसँ भेंट करय अबैत छथि त‘ ओतय अग्नि परीक्षाक तैयारी देखि बाल्मीकिक सीता,
रामक सभ घटाटोपकें
छिन्न-भिन्न क‘ दैत छथि। एहि
प्रसंगमे वाल्मीकि जाहि तरहें रामक पुरुषवादी छवि अंकित कयलनि आ सीताक चरित्रमे
विलक्षण प्रखरता आ तेजस्विताक आत्मसाक्षात्कार कयलनि ओ अदभुत अछि। राम अपन
मान-मर्यादा आ ‘रघुकुल रीति’क समक्ष एकटा स्त्रीक अस्तित्वकें किछु नहि
बुझैत छथि। सीताकें संबोधित करैत कहै छथि जे ‘‘अपन तिरस्कारक बदला चुकयबाक हेतु जे मनुष्यक
कर्तव्य होइछ, ओ सभ हम अपन मान रक्षाक अभिलाषासँ रावणक वध क‘ पूरा कयल। युद्धक परिश्रम उठा जे हम विजय
प्राप्त कयल ओ अहाँक वास्ते नहि। सदाचारक रक्षा, अपवादक निवारण आ सुविख्यात वंश पर लागल कलंकक परिमार्जन हेतु युद्ध कयल। अहाँक
चरित्रमे संदेहक गुंजाइश बनैत अछि। हमरा आँखिकें अहाँक छवि सोहा नहि रहल अछि। के
एहन पुरुख हैत जे दोसरा घरमे रहल स्त्रीकें मात्र एहि वास्ते अपना संग ल‘ जायत जे ओ किछु दिन ओकरा संग बहुत प्रेमसँ रहि
चुकल होइ। आब अहाँके जतय मोन हुए जा सकैत छी। अहाँ अपना इच्छानुसारे शत्रुघ्न,
वानरराज सुग्रीव अथवा
राक्षसराज विभीषण संग जा सकैत छीं’’ - यत कर्तव्यं मनुष्येण
धर्षणा प्रतिमार्जतशत्रुघ्ने वायं सुग्रीवे राक्षसों वा विभीषणे (वाल्मीकि रामायण,
द्वितीय भाग, उत्तरकाण्ड, गीतापे्रस, गोरखपुर) रामक ई गिरगिटिया रूप देखि सीता
रामराज्यक (रामराज्यक तात्पर्य अतय रामक नीति आ मूल्यसँ अछि) बखिया उधेडि दैत छथि।
कालिदासक सीता त‘ रामराज्यक मूल्यकें प्रश्नांकित करैत लक्ष्मणकें कहैत छथिन्ह ‘‘तों हमरा दिससँ राजा
रामकें कहिहैं जे अहाँ अपने सन हमरा अग्निमे शुद्ध पौने छलहुँ। एहि समयमे अपयशक
डरसँ जे अहाँ हमरा छोड़ि देल से की अहाँक प्रसिद्ध कुलकें शोभा दैत अछि जाहिमे अहाँ
जन्म लेने छी?’’ कालिदासक सीताक
विद्रोही तेवर रेखांकन योग्य अछि। एकटा कुलीन स्त्री द्वारा पति वंश पर
प्रश्नचिह्न लगायब अत्यंत सार्थक आ सांकेतिक अर्थ रखैत अछि? स्वयंभूक सीता त‘ रामपर स्त्री हत्याक संभावनाक आरोप लगाबैत कहैत
अछि, ‘‘लोकक कारणें कठोर राम हमरा अकारण निर्वासित क‘ देलनि। शीलव्रतकें घारण कयनिहार हम जँ मरि
गेलहुँ त‘ रामकें स्त्री
हत्या लगतन्हि।’’ स्वयंभू आ
भवभूतिक सीता स्त्री दर्पसँ दमकैत सीता छथि।
मैथिलीक पहिल रामायण लिखबाक श्रेय चंदाझाकें
जाइत छन्हि। अध्यात्म रामायण, वाल्मीकि रामायण आ रामचरितमानस आदिक आधार पर ओ मैथिली रामायण लिखलनि। भाव आ
भाषा दूनूमे हुनक मौलिक कल्पना यत्र-तत्र देखबामे अबैछ। आलेाच्य रामायणक रचना सन 1898मे भेल, जखन सभ भारतीय भाषाक साहित्यमे आधुनिक काल चलि
रहल छल। आधुनिक कालक रचना हाइतहुँ एहिमे आधुनिक भावबोधक दर्शन नहियेक बराबर होइत
अछि। कारण, चंदाझा आपादमस्तक
भक्तिरसमे डूबल कवि छलाह। राम हुनक आराध्य। आराध्य पर प्रश्नचिह्न कोना? चंदाझा सीताक अग्नि परीक्षाकें राम द्वारा लेल
सतीत्व परीक्षाक रूपमे नहि देखैत छथि। संपूर्ण परिघटनाकें कवि ओहि पौराणिक आख्यानक
जामा पहिरबैत छथि जाहिमे कहल गेल जे असली सीता तँ रावण संग गेबै नहि कयलीह। रावण
संग जायबाली सीता त‘ सीताक छायामात्र
छलीह। अग्नि परीक्षाक बहन्ने छाया सीता आगि में गेलीह आ असली सीता आगिसँ बाहर
निकलि गेलीह। एहि पौराणिक आख्यानक मादे राम पूर्णतः दोषमुक्त भ‘ जाइत छथि। कदाचित एहि तरहक आख्यानक सृजन
मर्यादा पुरुषोत्तम राम पर लागल धब्बाक परिहारक लेल कयल जाइत अछि। वाल्मीकि,
भवभूति, स्वयंभू तथा कालिदास प्रभृत कविक लेल एहि तरहक
आख्यानक कोनो महत्त्व नहि। सीताक जन्मभूमिक होइतो चंदा झा सीताक उपेक्षा, अपमान आ अवहेलनाकें आड़ देबयबला पौराणिक आख्यानक
सहारा ल‘ रामक एहि कृत्यें
झपबाक प्रयास करैत छथि। एकटा भक्त कविसँ एहिसँ बेसीक उमेदो नहि। एहन भक्त कवि
घटनाकें तर्कक कसौटी पर नहि बल्कि आस्थाक प्रश्न बूझि सहजहिं स्वीकार क‘ लैत छथि। बिनु आलोचनात्मक विवेककें परम्परामे
आस्था राखयबला एहन भक्त कवि रामेके नहि अपितु पति मात्रकें परमेश्वर बुझैत छथि आओर
ओकर सभ तरहक करणीय-अकरणीय कार्यक औचित्य निरूपण करैत छथि। सोलहवीं शताब्दीक कवि
तुलसीदास होथि वा उन्नेसम सदीक चंदा झा, पतिक एहन तरहक आदेशकें पत्नी संपूर्ण आदर आ भक्ति भावसँ
स्वीकार करैत अछि। एते भेलाक बादो पति भक्तिमे कोनो कमी नहि-
पतिक प्रदक्षिणा कय
कयबेरि। बेरि बेरि चरणाम्बुज हेरि।
वैदेही सभ शक्तिक शक्ति।
रामचरणमे अविरल भक्ति ।।
सीताकें निर्वासित क‘ देलाक बाद कविक हृदय फाटि जाइत अछि। सीता दुखक
विस्तृत वर्णन चंदाझाक रमायणकें अन्य भाषा-भाषी रामायणसँ अलग करैत अछि। चंदाझाक
सीता कहैत छथि, राजा राम बहुत
बड़का राजा छैथि, मुदा ओ उचित
कार्य नहि कयलनि। हम पेटसँ छी आओर हमरा आगाँ पाछा कियो नहि। आब हमरा लगैत अछि जे
हम बचि नहि पैब। हे राम, अहाँक हृदय की पाथरक भ‘ गेल। हम कखन धरि नोर बहबैत रहब। कखनो राजा मित्र नहि भ‘ सकैत अछि। ई बात खाली सुनितै रहियै, आई आँखिसँ देखियो लेलियै-
‘‘रघुवर बड़ महराजे, कयल उचित नहि सम्प्रति काजे।
भूपति होथि न मित्रे,
सुनतहि छलहुँ से देखल
चरित्रे।।’’
एहि रामायणमे सीताक स्वाभिमानी चरित्र सेहो
उजागर भेल अछि। निर्वासित भेलाक बाद ओ एक क्षणक लेल सोचैत छथि जे नैहर चलि जाइ,
मुदा ई सोचिक‘ जे माता-पिता की सोचत, यैह ने जे नाम हँसाक‘ आयल अछि। ई सोचि ओ नैहर नहि जाइत छथि। सीता नईं
सासुरक भ‘ सकलीह आ ने
नैहरक। एहि दाररुण दशाक कल्पनेटा कयल जा सकैत अछि-
‘‘नैहर जौं मिथिला चलि
जायब। कहत बाप की माय रे।
पुरुष परसमणि-कर हम सोपल,
अयली की नाम हँसाय रे।।’’
दोषी के दोषमुक्तक‘
सीताक दुखक कोन महत्त्व?
एक दिस रामकें क्लीन चिट
आ दोसर दिस सीताक दुखक व्योरेवार विश्लेषणक निहितार्थ बूझब कठिन नहि।
मैथिली रामायण परंपरामे चंदाझाक बाद महाकवि लालदासक
नाम अत्यंत आदरसँ लेल जाइत अछि। रामकथा
आधारित हिनक दू गोट रचना छनि ‘रामेश्वर चरित’ आ ‘जानकी रामायण’। ‘रामेश्वर चरित’मे मुख्यतः रामक चरित्र चित्रण कयल गेल अछि, तथापि सीताक प्रधानता लालदासक एहि रामायणमे
भेटिये जाइत अछि। लंका विजयक बाद जखन राम आयोध्या अबैत छथि त‘ किछु घटनाक्रम ऐहन घटैत छै जे हुनका एकटा दू
हजार बाँहिबला रावणसँ युद्ध करय पड़ैत छनि। एहि युद्धमे राम सहित सभ भाई आ
हनुमान आदि पराजित भ मूर्छित भ‘ जाइत छथि, तखन सीता रौद्र रूप धारण क‘ कालीक अवतारमे दू हजार बाँहिबला रावण आ ओकर
समस्त सैनिककें समाप्त क‘ दैत छथिन-
‘‘लगली नृत्य करय तत्काल।
देखि पराक्रम रिपुक विशाल।
अट्टहास कय छोड़थि जखन।
भयसौं मरय असुर कति तखन
कोटि कोटि भट एकहिबेर।
खसथि यमालय जाथि सवेरि।
दानवगण सभ मारल गेल।
भूमिक भार सकल हरि लेल।’’
सीताक ई शक्तिशाली आ प्रचंड रूप कदाचिते कोनो
अन्य रामायणमे भेटि पाबय। मुदा यैह शक्ति प्रदर्शन सीताक लेल काल बनि गेल। ओहि दिन
रामकें ज्ञात भेलनि जे सीता हमरासँ बेसी पराक्रमी छथि। सामान्यतया कोनो पुरुष
अपनासँ बेसी काबिल आ पराक्रमी स्त्रीकें बर्दाश्त नहि क‘ पबैत अछि। कोनो आश्चर्य नहि जे सीता निर्वासनक
ई एकटा महत्त्वपूर्ण कारण हो। धोबी प्रसंग कोनो तार्किक संगति नहि द‘ पबैत अछि, ई बहाना मात्र बूझि पड़ैछ। सीताकें रामसँ बसी
शक्तिशाली देखा लालदास नारी शक्तिक संधानत‘ कयलनि, मुदा एतेक शक्तिशाली स्त्रीकें सेहो अग्नि
परीक्षा देबैये पड़ैत छैक। पतिक आसन पर बैसल पुरुख सदिखन शक्तिशाली होइत अछि आ
शक्ति तथा प्रतिभासँ सम्पन्न पत्नीक भाग्य नियन्तो। एहि आसन पर बैसल पति कहियौ आ
कखनौ पत्नीक सतीत्वक परीक्षा लेबाक अधिकारी होइछ-
‘‘परघर चिरदिन रहय जे नारि।
तकर ग्रहण थिक दुस्सह गारि
एहि अपवादक शमन उपाय।
फुरय न अनुखन मन अकुलाय।।’’
लालदासक ‘जानकी रामायण’क नामहिसँ स्पष्ट होइछ जे सीताक प्रधानता
देखायब कविक प्रधान लक्ष्य। मुदा पता नहि लालदास कोन-कोन कथा, उपकथा आ आख्यानमे भुतिया गेलाह जे सीताक चरित्र
पूर्ण रूपसँ उभरिक‘ एहि रचनामे नहि
आबि सकल। इ बात सच जे ई सभटा कथा, उपकथा सीताक प्रमुखते दर्षेबाक हेतु कवि रचलनि, मुदा नारद आ कृष्णादि कथामे सीता कतौ हेरा
गेली। प्रस्तुत रचनामे सभटा कवित्व शक्ति एहि तथ्यकें प्रमाणित करबामे लगाओल गेल
जे राधा आओर लक्ष्मी दूनू सीतेक रूप छथि। एहि तरहें सीताक महत्त्व त‘ प्रतिपादित भ‘ जाइछ मुदा एहि महत्ता प्रदर्शनमे ओहन सीता जे
अत्यंत स्नेहमयी छलीह, मिथिलाक बेटी आ रामक पत्नी छलीह जिनका विवाहक पश्चात रामराज्यमे एकटा अदना
मनुक्ख होयबाक अधिकारो नहि भेटि सकलनि, ‘जानकी रामायण’मे कतहु नहि भेटति छथि।
सीताराम झा रचित एकटा महत्त्वपूर्ण रामायण अछि-‘अम्बचरित’। एहि रामायणक केंद्रमे राम नहि सीता छथि। ‘अम्बचरित’मे मिथिलाक लोक संस्कृति, रीति-नीति, पाबैन-तिहार सभ
किछु अत्यंत साकार रूपमे उपस्थित भेल अछि। मिथिलाक जीवन आ सीताक बाल्यकाल, किशोर-वय एवम रामक संग सीताक विवाह आदि एहिमे
अत्यंत विस्तारेसँ नहि अपितु कलात्मकताक संग प्रस्तुत भेल अछि। अकरा जँ मिथिलाक
सांस्कृतिक रामाययण कहल जाय त‘ अतिशयोक्ति नहि। उदाहरण स्वरूप एहि पदमे मिथिलाक विलक्षण संस्कृतिसँ साक्षात्कार
करी-
‘‘घर-घर अतिथिक हेतु पृथक
राखल जल आसन
चाउर चूड़ा दही, दालि तरकारी वासन
पथ पथपर पुनि पथिक हेतु
प्रतिपुर पनिसाला
ने क्यौ पहरादार कतहु
लागल ताला।’’
संगहि सीताक किशोर वयमे
चंचलताक संग सामाजिक-पारिवारिक दायित्व-बोध सेहो परिलक्षित होइछ। एतय सीता ‘जानकी रामायण’ जकाँ अलौकिक नहि बल्कि नितांत लौकिक छथि। आम
नारी जकाँ सभ तरहक काज अपनहि करैत छथि। राजा जनकक पुत्री होएबाक कोनो गुमान नहि-
‘‘टकुरी चरखा सिविया बुनिया
एपन पुरहर कुटिया पिसिया
खोपा खोपी जूड़ा बान्हब
दालि-भात-तरकारी रान्हब।’’
सीताक ई सहजता देखि
मल्लिक मुम्मद जायसी रचित ‘पद्यमावत’क नागमतीक स्मरण
भ‘ जायब स्वाभाविक। एहि
रामायणमे मिथिला संस्कृतिक विलक्षण झाँकी निश्चित रूपें एकरा अन्य भारतीय भाषाक
रामायणसँ विशिष्ट बनबैत छैक। मुदा ‘अम्बचरित’ चारू भाइक
विवाहोपरांत अयोध्या आगमनक पश्चात् समाप्त भ‘ जाइत अछि। जखन कि सीताक संघर्ष त‘ शुरुए होइत अछि अयोध्या पहुँचलाक बाद। सीताक
करुणाक महागाथा त‘ अयोध्यामे रचल
जाइत अछि। नेपालक रामायण परंपराक प्रभाव
कवि पर बुझना जाइछ। नेपालमे सीता विवाहक संग रामायण समाप्त भ‘ जाइत अछि। नेपालक कविकें सीताक दुखक वर्णन नहि
कयल जाइत छनि। ई सीताक प्रति अयोध्या स्टेटक निरंकुशताक सांकेतिक अभिव्यक्ति सेहो
भ‘ सकैछ।
आधुनिक कालक एकटा महत्त्वपूर्ण मैथिली रामायण
अछि ‘सीतायन’। कवि वैद्यनाथ मल्लिक ‘विधु’ रामायणक समानान्तर ‘सीतायन’ नामकरण सीताक महत्त्व प्रतिपादन हेतु कयलनि से
स्पष्ट। एहि रामायणमे सीताक दुख आ हुनक तेजस्वी रूपसँ साक्षात्कार त‘ होइत अछि मुदा रामराज्यक भरपूर प्रशंसाक संग। ओ
कोनो रामायण सीताक संग पूर्ण न्याय नहि क‘ सकैत अछि जे रामराज्यक प्रशंसा सेहो करैत हो। हँसब आ कानब
दूनू संगहि संभव नहि। जाहि रामराज्यमे एकटा स्त्री आ दलितक संग न्याय नहि भ‘
पबैत छै, उल्टे ओकर औचित्यीकरणक प्रयास करैत होइ,
ओ राज्य आओर जे किछु हो,
सर्व मंगल राज्य नहि कहल
जा सकैछ। ओना ‘सीतायन’ पुरुष मनोवृत्ति पर प्रहार करबामे नहि चुकैत
अछि। पुरुष आ स्त्री संग दू तरहक नियम संहिताक आलोचना करैत अछि। पुरुखकें कहियो
अग्नि परीक्षा नहि देबय पड़ैत छैक। सदिखन अग्नि परीक्षा आ लक्ष्मण रेखा स्त्रीक
हेतु सृजित कयल जाइत छैक। एहन पुरुख समाजकें शापित करैत कवि कहैत छथि-
‘‘पड़ल रहथि पर पुरुष राति
दिन पर घर मे पर नारिक संग
करथि केलि निर्भीक प्रगट
संकोच रहित भए विवश अनंग
किन्तु तनिक के करओ
परीक्षा आदर अपितु करैछ समाज
बुड़त अवश्ये एहन बुद्धिसँ
आगू चलि पुरुषोक जहाज।’’
श्री खड़्ग बल्लभदास ‘स्वजन’ रचित ‘सीता शील’क सीता ततेक
शीलवती छथि जे निर्वासनक दण्ड भेटलाक बादो पति रामकें दयाक सिन्धु आ असहायक सहायक कहैत छथि-‘अशरण-शरण, असहाय-रक्षक दीन जनकें बन्धु ओ।’ भक्त बल्लभदास सीताक मुंहसँ दुखक बात त‘
कहबैत छथि, मुदा दुख दबयबलाक प्रति सीताकें अत्यंत कोमल
बना दैत छथि, किएक त‘ दुख देनहार घरबला छैक। पति जखन ‘परमेश्वर’ होइत छैक, तखन ओकर दोष कोना भ‘ सकै छै, दोष त‘ स्त्रीक भाग्यक। ई अकारण नहि जे पति द्वारा खूब
लांक्षित-उपेक्षित भेलाक बादो सीता रामसँ कहैत छथिन जे अहाँ एहि अबोधिनी नारीकें
बिसरि नईं जायब। अहाँ अपन एहि प्यारीकें हृदयमे बसौने रहब।-
‘‘नहि बिसरि कखनो जाथि एहि
अबोधनी निज नारी कें
डर मे बसौने रहथि सदिखन
एहि अपन पियारी कें।’’
एहि प्रकारें हम देखैत छी
जे मैथिली रामायण परंपरा अयोध्या स्टेट वा रामराज्यक प्रति आलोचनात्मक नहि भ‘ पबैत अछि। तुलसीदासक साँचासँ बहरैब मैथिली भाषी
कविकें स्वीकार नहि। रामक ‘हेजेमनी’क अतिक्रमण करब
आधुनिक कविक प्रयोजन नहि। रामक प्रभामंडलक संग सीताक पहाड़ सनक दुख आ घनीभूत पीड़ाक
अभिव्यक्ति संभव नहि। एकर विपरीत लोक रामायण अदभुत रूपें सीताक संग अछि आ सीताक
तेजस रूपकें आकार दैत अछि।
मैथिली लोकगाथा परम्पराक रामायण ‘लवहरि-कुशहरि’मे सीताक विराट् व्यक्तित्वसँ परिचय होइछ,
जे अन्यत्र कतहु नहि
भेटत। एहि लोक रमायणक सीता राम आ रामराज्यक अभा मंडलसँ पूर्णतः मुक्त अछि। एतय
सीताक स्व-पूर्ण व्यक्तित्व लगातार विस्तार होइत चलि जाइत अछि। ई सीता ‘सहस’ रावणक वधसँ ल‘क‘ पाताल प्रवेश धरि राममुक्त, स्वंयप्रभ, आत्मगौरव आओर सहज
मातृत्वसँ ओतप्रोत अछि। एहि सीताक सभसँ पैघ उपलब्धि अछि सीताक एकल अभिभावकत्व।
आजुक उत्तर आधुनिको युगमे जँ कोनो स्त्री
पतिसँ अलग भ‘, बिनु पुरुखक
सहायताक रहैत अछि आ बाल-बच्चाकें पालैत-पोसैत
अछि त‘ ओकरा नाना
प्रकारक दिक्कते नहि होइत छै बल्कि अपमान आओर लांक्षना सेहो भोग‘ पड़ैत छै। कदाचित सीता पहिल एकल स्त्री अभिभावक
छलीह, जे अपन बच्चाकें
स्वयं पूर्ण सफलतापूर्वक पोसली। एहि सीताक दोसर वैशिष्ट्य अछि हिनक शिक्षिका रूप।
सभ रामायणमे लव आ कुशकें वाल्मीकि शिक्षा दैत छथिन, किन्तु लवहरि-कुशहरिक सीता अपन पुत्रकें सभ
प्रकारक शिक्षा स्वंय दैत छथि। ध्यान देबाक बात जे ज्ञान-विज्ञानसँ ल‘क‘ अस्त्र-शस़्त्रक शिक्षा धरि। एकल स्त्री अभिभावको कतेक तेजस
आ अकुंठ बच्चा समाजकें द‘ सकतै अछि, तकर प्रमाण अछि-‘लवहरि कुशहरि’।
सीताक गरिमापूर्ण व्यक्तित्व जतेक
बंगला रामायणमे स्पष्ट रूपें उभरल अछि, मैथिली रामायणमे नहि। आश्चर्यक विषय जे तुलसीदासक समयमे
अर्थात सोलहवीं शताब्दीमे चंद्रावती नामक बंगला महिला रामविहीन रामायणक
रचना कयलीह, जकरा सायास दबा
देल गेल। सीताक रूपमे एहि चंद्रावती
रामायण मे स्त्री शक्तिक अद्भुत संधान भेल। 1575 ई0मे रामविहीन रामायणक कल्पना अजगुत। चंद्रावती रामक
महात्मयसँ मुक्त छलीह। कृतिवास रामायणमे चूंकि रामक महिमाक गान मुक्त कंठसँ कयल
गेल तें बंगला रामायण परंपरामे ई सभसँ लोकप्रिय आ चंद्रावती रामायणमे चूंकि रामक
आलोचना कयल गेल ताहि हेतु एकरा सैकड़ों सालक वनवास। नवनीता देवसेन महिला रचनाकार
द्वारा लिखल गेल रामायण पर शोध कार्यक अंतरालमे एहि तथ्यक उद्घाटन कयलीह। मौखिक
परंपराक चंद्रावती रामायण रामकें एकटा कमजोर पति, कमजोर राजा आओर कमजोर भाईक रूपमे देखैत अछि,
जे अपन अनुजकें इच्छा
विरुद्ध कार्य करबाक हेतु बाध्य करैत अछि। एकटा कमजोर पिता जे अपनो पुत्रक
जिम्मेदारी नहि उठा पबैत अछि। राजा रामकें ईष्यालु पति कहल गेल जे सीताकें
अंशतः रावणक प्रति अपन ईष्र्याक कारणें निष्कासित क‘ दैत अछि। ‘चंद्रावती रामायणमे ईष्यालु रामक वर्णन एहि
तरहें कयल गेल अछि-
‘‘उन्मत्तो पागोल प्राय
होइलेन राम/रक्तजबा आंकोबी रामेर गो, शिरे रक्त उठे/
निशिकाय अग्निश्वास गो,
ब्रह्मरंध्र फुटो।‘‘
जाहि तरहें चंद्रावती
रामायणकें अज्ञातवास देल गेल से विचारणीय। एहि संदर्भमे नवनीता देवसेन
लिखैत छथि, ‘‘महाकाव्यक
पितृसत्तात्मक समाजतंत्रमे स्त्रीक आकांक्षा लेल कोनो स्थान नहि, अपितु दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम होइछ जे युद्ध आ
पीड़ा दिस ल‘ जाइत अछि। जखन हम
अधिकारे स‘ नहि अपितु
आवश्यकतो स‘ वंचित भ‘ जाइत छी तइयो
बचल रहबाक कानो ने कोनो रस्ता ताकिये लैत छी। महिला लोकनिक श्रमगीत तकरे
फलाफल। गीतक माध्यकसँ सुख-दुखमे हिस्सेदारी बाँटिक‘ स्त्रीगण जीवनी शक्ति पबैत छथि आओर अपन
आकांक्षाक अभिव्यक्ति करबाक आकाश सेहो।’’(स्त्री प्रतिरोध के पुरा लेख, अवधेश मिश्र, तद्भव-141, पृ 155)
समकालीन मैथिल रचनाकारमे किछु एहन रचनाकार
अवश्य भेट जाइत छथि जे रामराज्यक घटाटोपकें हटबैत सम्पूर्णतः सीताक संग ठाढ़ होइत
छथि। भले ई रचना फुटकल-मुक्तक कविताक रूपमे हो, नाटकक रूपमे हो वा गद्यक रूपमे। एहि तरहक रचनामे
सीताक तेजपूर्ण व्यक्तित्वक संग रामराज्यक प्रति भर्त्सनाक स्वर स्पष्ट रूपसँ
मुखरित भेल अछि। उमाकांतक नाटक ‘सीता’मे सीताक विद्रोही व्यक्तित्व नीक जकाँ उभरल अछि। एहि नाटकमे आजीवन वनवासक
संत्रास भोगि रहल सीताकें जखन राम एक बेर सिंहासन पर बैसब‘ चाहैत छथि त‘ सीता एकर प्रतिवाद करैत कहैत छथि, ‘‘(आक्रोशमे) नै चाही हमरा अयोध्याक स्वर्ण सिंहासन। स्वर्ण सभ दिन हमरा
भ्रमित करैत रहल। स्वर्ण सिंहासनक बेर आयल त‘ चैदह वर्षक बनवास। इएह स्वर्णक कारणें हरण भेल।
सतित्वक प्रमाण देबाक लेल अग्नि -परीक्षा देलहु। अयोध्या नरेशक न्याय हमरा
सिंहासनसँ वंचित क‘ विषम परिस्थितिमे
जंगलक यातना देलक। आइ फेर वैह अग्नि परीक्षा? एक नारीकें सतित्वक प्रमाण देबाक लेल कतेक बेर
आगिक ज्वालामे झोंकल जा सकैछ।’’
प्रो0 दयानन्द झा अपन एकटा कवितामे सहस रावणवला पौराणिक आख्यानक
माध्यमसँ सीताक प्रति रामक पूर्वाग्रहकें रेखांकित करैत छथि। सहस रावणसँ पराजय-भाव
आ सीताक पराक्रमी व्यक्तित्वक पृष्ठभूमिमे कविक कल्पना थिक जे सीताक सम्मुख राम
अपन ई घनघोर पराजय-भावकें पचा नहि पबैत छथि। हुनका इहो लगैत छनि जे भविष्यमे आगू
कतेको बेर एहि अपराजेय आ शक्तिशाली स्त्रीसँ पराजित होबए पड़त। एहि घटनाक पश्चात
हुनक अपन वीरता आ वीरताक सार्वजनिक घोषणा फूसि लाग‘ लगैत छनि। रामकें ई विश्वास भ‘ गेलनि जे जँ हमरा अपन वीरता, प्रभुता आ सभसँ बढ़िक‘ अपन ‘मर्यादा’ लोकक समक्ष बचयबाक हो त‘ एहि स्त्रीकें अयोध्यासँ बिनु निकालने आन कोनो उपाय नहि। ताहि हेतु कवि
दयानन्दक अनुसारें राम धोबी प्रसंगक बहन्ना ताकि सीताकें अंध गह्वरमे धकेल देलनि-
‘‘कैल उपेक्षा कैल
परीक्षा/अग्नि-प्रविष्टा स्वच्छ प्रवाद
किन्तु कि तैयो काइन
बिसरल?/बनहि पठाओल धोबी
बात
काइन रहनि हुनि शक्ति
सफलता/सहसबाहु हति सीता लेल
किन्तु जे पगड़ी अवधक
राखलि/काटलि हाथे घड़ी भेल।’’
मैथिलीक प्रमुख रामायणक
तुलनामे मैथिल लोक जीवनमे अयोध्या स्टेट वा
रामक प्रति बेसी आक्रोश देखबामे अबैछ। लोक जीवनमे रामराज्यक प्रति धारणा
यद्यपि स्वतंत्र अध्ययनक मांग करैत अछि, मुदा मिथिलाक लोक-बाग त‘ आइयो कहैत छथि रामक संग विवाह क‘ सीताकें की भेटलनि? सीताक सम्पूर्ण जीवन त‘ बनेमे बीत गेल-
राम बिहायने कोन फल भेल/
सीता जीवन बने गेल
सीता जनम बियोगे गेल/ दुख
छोड़ि सुख कहियो नै भेल।
(अंतिकामे प्रकाशित)
बड नीक छै
ReplyDeleteवाह, मैथिली मे, ओहो शुद्ध।
Deleteबड़ नीक लागल ,आइयो त मिथिलाक बेटी के दोसर कतौ यैह गति
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद। अहाँक नाम सेव नहि अछि।
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बहुत सुंदर
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